पामगढ़ विधानसभा के राजनीतिक हालातों पर पंकज कुमार का EXCLUSIVE विश्लेषण : PART 1
Pankaj Kumar@News Dastak | पामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में पिछले दो दशकों से लगभग आधा दर्जन कद्दावर नेता पामगढ़ विधानसभा क्षेत्र से बाहर अपनी राजनीतिक जमीन की तलाश में अन्य विधानसभाओ में जा चुके है। हालांकि इस बार के चुनाव में पामगढ़ विधानसभा के स्थानीय दावेदारों ने मुखर होकर बाहरी प्रत्याशियों के खिलाफ मोर्चा सम्हाल रखा है, दावेदारों ने अपना विरोध प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा और प्रदेश संगठन के पदाधिकारीयो के समक्ष किया है।
बहुजन समाज पार्टी छत्तीसगढ़ के सर्वमान्य नेता और तीन बार के पामगढ़ विधायक दाऊराम रत्नाकर इस बार मस्तूरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, दाऊराम रत्नाकर 1990, 1993 और 1998 में इस सीट से विधायक चुने गए थे, छत्तीसगढ़ गठन के बाद 2003 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस से महंत रामसुंदर दास ने उन्हें हराकर पामगढ़ सीट जीता था, फिर 2008 में यह सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हो गई, तब तत्कालीन विधायक महंत रामसुंदर दास ने जैजैपुर से चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी, हालांकि 2013 में जैजैपुर से चुनाव हार गए और 2018 में उन्हें किसी भी विधानसभा से टिकट नहीं मिला, इस बार 2023 की विधानसभा चुनाव में महंत रामसुंदर दास ने जांजगीर विधानसभा सीट से अपनी दावेदारी पेश की है।
ठीक वैसे ही 2013 में पामगढ़ विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुकी शेषराज हरवंश भी पामगढ़ के साथ-साथ मस्तूरी से भी टिकट की दावेदारी कर रही है। 2013 के विधानसभा चुनाव में शेषराज हरवंश को कांग्रेस से टिकट मिलना किसी राजनीतिक आश्चर्य से कम नहीं था, क्योंकि उस समय शेषराज हरवंश का नाम पामगढ़ विधानसभा के कुछ इक्का-दुक्का लोग ही जानते थे, फिर भी लगभग 35000 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रही, 2018 के विधानसभा चुनाव में शेषराज हरवंश अपनी टिकट को लेकर आश्वस्त थी कि विधानसभा से इस बार उनकी टिकट रिपीट होगी। लेकिन 2018 में 2008 में उम्मीदवार बनाए गए गोरेलाल बर्मन को कांग्रेस ने टिकट दे दिया। पामगढ़ की राजनीतिक जमीन खिसकने की आशंका से नई राजनीतिक जमीन तलाशते हुए इस बार 2023 की विधानसभा चुनाव में पामगढ़ के साथ ही मस्तूरी से भी अपनी टिकट के दावेदारी पेश की है। गौरतलब है कि शेषराज हरबंश अजा विभाग की महिला कांग्रेस कमेटी की प्रदेश अध्यक्ष के साथ-साथ चुनाव अभियान समिति में भी सदस्य हैं।
2014 में कांग्रेस की टिकट पर जांजगीर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके प्रेमचंद जायसी भी लोकसभा चुनाव में हार गए, उसके बाद हुए पंचायत चुनाव में पामगढ़ विधानसभा के एक जिला पंचायत क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य चुने गए थे और 2018 तक पामगढ़ विधानसभा के लिए उनकी दावेदारी भी बहुत मजबूत थी। लेकिन 2018 के चुनाव में गोरेलाल बर्मन को टिकट मिलने के साथ ही और नतीजे में मस्तूरी से दिलीप लहरिया के हारते ही उन्होंने अपने गृह क्षेत्र मस्तूरी की ओर रुख कर लिया। कभी प्रेमचंद जायसी के करीबी रहे शाकंभरी बोर्ड के अध्यक्ष रामकुमार पटेल ने भी अकलतरा विधानसभा सीट से अपनी दावेदारी पेश की है, हालांकि उनका गृह क्षेत्र पामगढ़ विधानसभा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।